Journal: शिक्षा संवाद (ISSN: 2348-5558)
Year: 2024 | Volume: 11 | Issue: 2 | Published on: 2024-12-31
लेखक: महात्मा गांधी
कूटशब्द: माँ
ऐसा एक समय मुझे याद है, जब उन्होंने चांद्रायण-व्रत किया था। बीच में बीमार पड़ गईं, पर व्रत न छोड़ा। चातुर्मास में एक बार भोजन करना तो उनके लिए साधारण बात थी। इतने से संतोष न मान कर एक बार चातुर्मास में उन्होंने हर तीसरे दिन उपवास किया। एक साथ दो-तीन उपवास तो उनके लिए एक साधारण बात थी। एक चातुर्मास में उन्होंने ऐसा व्रत लिया कि सूर्यनारायण के दर्शन होने पर ही भोजन किया जाए। इस चौमासे में हम लड़के आकाश की ओर देखा करते कि कब सूर्य दिखाई पड़े और कब माँ खाना खाए। सब लोग जानते हैं कि चौमासे में अनेक बार सूर्य-दर्शन कठिनता से होते हैं। मुझे ऐसे दिनों की आज तक स्मृति है, जबकि हमने सूर्य को निकला हुआ देख कर पुकारा है, “माँ-माँ, वह सूरज निकला।” और जबतक माँ जल्दी-जल्दी दौड़कर आती हैं, सूर्य अस्त हो जाता है! माँ यह कहती हुई लौट जाती, “ख़ैर, कोई बात नहीं, ईश्वर नहीं चाहता कि आज भोजन प्राप्त हो।” और अपने कामों में व्यस्त हो जातीं।
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