Journal: शिक्षा संवाद (ISSN: 2348-5558)
Year: 2024 | Volume: 11 | Issue: 1 | Published on: 2024-07-01
लेखक: सआदत हसन मंटो
कूटशब्द: कहानी
बंटवारे के दो-तीन साल बाद पाकिस्तान और हिंदुस्तान की हुकूमतों को ख्याल आया कि अख्लाकी कैदियों की तरह पागलों का भी तबादला होना चाहिए, यानी जो मुसलमान पागल हिन्दुस्तान के पागलखानों में हैं उन्हें पाकिस्तान पहुंचा दिया जाय और जो हिन्दू और सिख पाकिस्तान के पागलखानों में है उन्हें हिन्दुस्तान के हवाले कर दिया जाय।
मालूम नहीं यह बात माकूल थी या गैर-माकूल थी। बहरहाल, दानिशमंदों के फैसले के मुताबिक इधर-उधर ऊँची सतह की कांफ्रेंसें हुई और दिन आखिर एक दिन पागलों के तबादले के लिए मुकर्रर हो गया। अच्छी तरह छान बीन की गयी। वो मुसलमान पागल जिनके लवाहिकीन (सम्बन्धी) हिन्दुस्तान ही में थे वहीं रहने दिये गये थे। बाकी जो थे उनको सरहद पर रवाना कर दिया गया। यहां पाकिस्तान में चूंकि करीब-करीब तमाम हिन्दु सिख जा चुके थे इसलिए किसी को रखने-रखाने का सवाल ही न पैदा हुआ। जितने हिन्दू-सिख पागल थे सबके सब पुलिस की हिफाजत में सरहद पर पहुंचा दिये गये।
उधर का मालूम नहीं। लेकिन इधर लाहौर के पागलखानों में जब इस तबादले की खबर पहुंची तो बड़ी दिलचस्प चीमेगोइयां होने लगी। एक मुसलमान पागल जो बारह बरस से हर रोज बाकायदगी के साथ जमींदारपढ़ता था, उससे जब उसके एक दोस्त ने पूछा-
-- मोल्हीसाब। ये पाकिस्तान क्या होता है ?
तो उसने बड़े गौरो फिक्र के बाद जवाब दिया-
-- हिन्दुस्तान में एक ऐसी जगह है जहां उस्तरे बनते हैं।
ये जवाब सुनकर उसका दोस्त मुतमइन हो गया।
इसी तरह एक और सिख पागल ने एक दूसरे सिख पागल से पूछा--
-- सरदार जी हमें हिन्दुस्तान क्यों भेजा जा रहा है हमें तो वहां की बोली नहीं आती।
दूसरा मुस्कराया-
No file available for download.
No similar articles found.
No additional articles by authors found.